“सच बेगाना”
मौसम की बहार में अब दगन हो गयी।
दिलो में जेठ सी जलन हो गयी।
पर वक्त का अपना पैमाना होता है।
अरे मानव सच बेगाना होता है ।
आज अपने ही सयाने हो गये।
दिल किसी ओर के तहखाने हो गये।
अपना क्या कभी वेगाना होता है।
अरे मानव सच बेगाना होता है।
हम तो आज उनसे संपूर्ण है।
वो हमारे बिन कैसे पूर्ण है।
यहाँ हर रिश्ते को निभाना होता है।
अरे मानव सच बेगाना होता है।
वक्त के पैमाने पर रहता जीवन हमारा।
फिर तुम क्यों करते मेरा नजारा।
यहाँ हर मंजर का नजराना होता है।
अरे मानव सच बेगाना होता है।
प्रशांत शर्मा “सरल”
नेहरू वार्ड नरसिंहपुर
मोबाइल9009594797