सच क्या है ?
सच क्या है ? क्या अभावों ने हमको घेरा है ?
या हमारे चारों तरफ अभावों का घेरा बना दिया है?
क्या ये खाकी वर्दी पहने यह हमारे रक्षक है या भक्षक हैं ?
ये सत्यवादी हरिश्चंद्र से दिखने वाले क्या सत्यवादी हैं ?
या झूठ का लबादा ओढ़े हुए अवसरवादी हैं ?
प्यार की कसमें खाने वाले ये आशिक क्या सचमुच में प्यार पर कुर्ब़ान होने वाले हैं ?
या मौका पड़ते ही प्यार को तार-तार कर इज्ज़त उतारने के लिए आम़ादा होने वाले मवाली हैं ?
ये जो सफ़ेदपोश़ हमद़र्द से दिखने वाले क्या सचमुच में हमद़र्द हैं?
या सफेद कपड़ों में छुपे कमज़र्फ है ?
ये सफेद कोट में देवदूत से लगने वाले क्या सचमुच में देवदूत हैं ?
या सफेद कपड़ों में खुद को छुपाए हुए लुटेरे यमदूत हैं ?
ये जो चंदन का टीका लगाये सात्विक से दिखने वाले वाले धर्म के प्रचारक क्या वास्तविक ऐसे ही हैं ?
या छद्मवेशी धर्म के नाम पर लूट करने वाले लुटेरे हैं ?
ये जो काला कोट पहने कानून की दुहाई देने वाले क्या कानून के संरक्षक हैं ?
या कानून को तोड़ मरोड़ कर पेश करने वाले कानून को बेचने वाले अपराधियों के संरक्षक हैं ?
क्या ये ज्ञान , अनुशासन एवं संस्कारों के शिक्षा देने वाले शिक्षक हैं ?
या अपने स्वार्थ की तुष्टि हेतु हेतु अपने विद्यार्थियों को बरगलाने वाले तक्षक है ?
अपने अविष्कारों से जनहित एवं शांति की खोज में लगे क्या ये प्रबुद्ध आविष्कारक हैं ?
या मानव जाति के विनाशकारी विध्वंस की चेष्टा में रत स्वार्थी चंद टुकड़ों में बिकने वाले तत्व हानिकारक हैं ?
क्या यह संविधान की रक्षा करने के लिए कृत संकल्प जन प्रतिनिधियों का सुशासन है ?
या अपनी कुर्सी की चिंता करने वाले, जनता में भ्रम पैदा कर अपना उल्लू सीधा करने वाले राजनीतिज्ञों का कुशासन है?
यह जो व्यापारी की तरह दिखता है क्या वास्तव में व्यापारी का ही चेहरा है ?
या व्यापारी का नकाब ओढ़े पहने देश को बेचने वाला मोहरा है ?
सोचता हूं कि जब आतंक का विनाश करने वाले ही आतंकवादियों से हाथ मिला लेंगे ।
और चंद रुपयों की खातिर देश को आतंक के गर्त में ढकेल देंगे।
तो देश का क्या होगा ? देश में ऐसे मीर कासिम और जयचंदों की कमी नहीं है जो ऐसा करने से कभी ना चूकेंगें।
अगर हम समय रहते नहीं चेतेंगें । तो वह दिन दूर नहीं जब हम अपनी आज़ादी तक को खो बैठेंगेंं।