सच के सिपाही
ज़रा कह दे कोई जा-जाकर
भटके हुए सभी फनकारों से
तुम जगा दो देश का ज़मीर
अपने फ़न की ललकारों से…
(१)
न तो दोजख का खौफ हमें
न ही जन्नत का लालच कोई
हम तो एलर्ट रहते हैं केवल
अपनी गैरत की फटकारों से…
(२)
किसी पार्टी के एजेंट नहीं
हम जनता के पैरवीकार हैं
सच के सिपाही को क्या लेना
इन आती-जाती सरकारों से…
(३)
हमें अपने लिए ढूंढ़ना होगा
इनसे बेहतर कोई मीडियम
अब काम नहीं चलने वाला
ऐसे टीवी और अख़बारों से…
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