सच की राहें
यह किसने कह दिया
कि सच की राहें मुश्किल है ?
जबकि झूठ और फरेब से
कुछ भी नहीं हासिल है ।
बहक जाते ,कुछ पल के लिए
पाने को चंद खुशियां ।
यही चुभे फिर ,पूरे सफर तक
जैसे पांवों में पड़े बेड़ियां ।
तिल-तिल मारे, सारी रात जगाए,
हर सांस बने ,मानो कातिल है ।
यह किसने कह दिया
कि सच की राहें मुश्किल है ?
एक झूठ बचाने को
बनाया सौ झूठ की कहानी।
विश्वास खोया जग का फिर
आंखों से उतरे पानी ।
ठहर जरा और सोच बेख़बर
तेरे कदम जाते किस मंजिल है ?
यह किसने कह दिया
कि सच की राहें मुश्किल है ?
सच्चाई में सुख है ,
और मिले सहज शांति ।
फरेबी में पल-पल खतरा
और पग-पग में है भ्रांति ।
नजर उठा ,कर सच का सामना
तेरा दिल भी सच के काबिल है ।
यह किसने कह दिया
कि सच की राहें मुश्किल है ?
(मनीभाई रचित)