“सच की गुंजाईश “
आजकल सच को भी अपनी “सत्यता” की गवाही तलाशनी पड़ती है।सत्य के अवसर तलाशती कविता:-
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“सच की गुंजाईश”
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जब भी झूठ
बोलता हूँ
पकड़ा जाता हूँ ।
ढूँढता हूँ
सच बोलने
की गुंजाईश !
गीता पर हाथ
रख कर भी
जब कभी कोई
कुछ कहता है
तब भी यक़ीन
नहीं होता
उसके सच बोलने पर।
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राजेश”ललित”शर्मा
१८-५-२०१७