” सच का सामना “
भाव का अतिरेक था,
थे अधर तक ना हिल सके।
युद्ध का मैदान था ज्यों,
बाण नयनों के चले।।
मौन का है, भाष्य अप्रतिम,
शब्द बौने हो गए।
प्रेम का सागर अपरिमित,
हम भँवर मेँ खो गए।।
वर्जनाएँ टूटतीं, सब,
विघ्न बोझिल हो चले।
दो दिलों के मेल मेँ,
सतरंग सब सजने लगे।।
त्याग था बरसों का जो,
आसार सब दिखने लगे।
शाश्वत-अमरत्व की हम,
सीढ़ियाँ चढ़ने लगे।।
था विलक्षण दृश्य, कुछ,
थे आवरण हटने लगे।
फ़ासले थे दरमियाँ जो,
ख़ुद-ब-ख़ुद मिटने लगे।।
दीप की कुछ लौ थी मद्धिम,
उर प्रकाशित हो गए।
मिट गए दुर्भाग्य ज्यों,
सौभाग्य पुलकित हो गए।।
स्वप्न सा लगता कोई,
छूकर कोई, कैसे कहे।
प्रकृति में सँकोच यदि,
भ्रमजाल यह कैसे मिटे।।
खुल गई जो आँख,
सच से आँख अब कैसे मिले।
कल्पना थी, भ्रम मिटा,
मन-चक्षु मानो खुल चुके।।
लेखनी से क्या लिखूँ,
हम भाव-विह्वल हो गए।
मिलन की “आशा” प्रबल थी,
अश्रुपूरित हो चले..!
रचयिता-
Dr.Asha Kumar Rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M 9415559964
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