सच का दीपक
जलाओ धरा पे दीये इतने सारे अंधेरा जहाँ में कही रह न जाये ,
इन दीपो में देखो सच का प्रकाश ये मन का दीपक कही बुझ ना जाये ,
खुद जलता है दीपक पर अँधेरा है उसमें , कोशिस करो ये अँधेरा भी मीट जाये ,
सीखे जरा इस दीपक से कुछ हम कही मन का लालच वो अँधेरा ना बन जाये ,
ये दिल ही है दीपक जिसमे विन्रमता का वास हो ,भर लिया है इतना बैर मन में दीखता नहीं कही स्नेह का प्रकाश ,
करो ऐसी कोसिस ऐसा दिया हम जलाये , नफरत अपने दिलो में कही रह ना जाये ,
जला दो जहाँ की ये सारी बुराई ये नफरत भी प्यार में बदल जाये,
जलाओ धरा पर दीऐ इतने सारे अँधेरा जहाँ में कही रह ना जाये ।