सच कहने से। डर लगता है
जो झूठ को नहीं पहचान सकता वह निर्णय कैसे दे सकता है। अपराधी को ही जज बनाकर फिर न्याय की आशा करता है। तेरे काले कानूनों को लानत है। हर अपराध कि यहां जमानत है। अपराध को कैसे रहते हैं। फिर क्या क्या कहते हैं। कोई कविता बनाकर कोई कहानी लिखकर कोई फिल्म बना कर रहते हैं। सामने से नहीं सब पीछे से वार करते हैं। हमेशा सच कहने से डरते हैं। अपराधी को न्यायधीश बनाकर खेल न्याय की आशा करते हैं।