सच्चे प्रेमी कहलाते हैं
निर्हेतुक निष्काम निरन्तर, प्रेमपंथ पर चलने वाले
सच्चे प्रेमी कहलाते हैं, राह न कभी बदलने वाले
आज यहां कल वहां भटकते, वे न कभी मंजिल पाते हैं
प्रेममार्ग से सदा शिखर पर, एकनिष्ठ प्रेमी जाते हैं
किसी प्रलोभन अथवा भयवश, होते रंच न टलने वाले
सच्चे प्रेमी कहलाते हैं, राह न कभी बदलने वाले
प्रेमपंथ पर चलकर अपनी, मंजिल पा जाती है मीरा
दिन में तो कांच भी चमकते, निशि में चमक दिखाए हीरा
पीड़ा में सुख अनुभव करते, हैं पीड़ा में पलने वाले
सच्चे प्रेमी कहलाते हैं, राह न कभी बदलने वाले
प्रेमपंथ पर चलकर मंजिल, एक नहीं, अनेक ने पायी
प्रेम ब्रह्म से करें उसी की, अग-जग में चेतना समायी
चलो जिसे चलना हो सॅंग में, हम हैं राह पकड़ने वाले
सच्चे प्रेमी कहलाते हैं, राह न कभी बदलने वाले
तुलसी सूर कबीर सभी ने, जीभर पिये प्रेम के प्याले
हैं रहीम रसखान जायसी, प्रेमपंथ के पथिक निराले
आओ यात्रा शुरू करें हम, बनें न पथिक बिछलने वाले
सच्चे प्रेमी कहलाते हैं, राह न कभी बदलने वाले ।
महेश चन्द्र त्रिपाठी