सच्ची कला
सोए हुए
लोगों की भीड़ में
धर्म गुरुओं,
राजनेताओं
और पूंजिपतियों के
प्राण बसते हैं,
कलाकारों के नहीं।
कला तो
एकांत में
पनपती और
कुछ जागृत चेतना वाले
व्यक्तियों के बीच में
फैलती है!
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