सच्चा धन
खुले ज़िस्म के बाजारों में
जिसने बेंचा ज़मीर नहीं,
मेरी नज़रों में इस दुनिया में
कोई उससे बड़ा अमीर नहीं।
गर ऐसा कोई सख्स मिले
तो उसकी कीमत तोल नहीं हैं।
जो बिका नही बाज़ारों में,
यहाँ उसका कोई मोल नहीं।
सच्चा धन (कविता)-सर्वाधिकार सुरक्षित,
स्व-रचित, द्वारा राजेन्द्र सिंह