सच्चाई
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रवि शंकर को अपनीबहू नीति कोहमेशा एक बात से चिढ़ रहती थी ।
रविशंकर के एक पुत्र था, पुत्री नहीं थी। उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता जब उनकी बहु अपने मायके वालों से फोन पर भी बात करती, रविशंकर का कहना था कि बहु अपने मायके वालों से दूर रहें,अपनी कुछ समस्या, खुशी उनसे नहीं बांटे।
वो बार-बार नीति को यही समझाते थे कि तुम हमारी जिम्मेदारी हो, तुम हमारे परिवार का हिस्सा होअपने मायके वाली से दूर बनाकर रहा करो उनसे कहो अब जो भी है जैसा भी है यही तुम्हारा घर है।नीति सुनती, गुस्सा भी आता पर,उन्हें कभी पलट का जवाब नहीं देती,
हमेशा उनकी हां में हां मिलाती रहती थी।
जबकि जानती थी कि एक बेटी का अपने माता-पिता से रिश्ता कभी खत्म नहीं होता और ना ही टूट सकता हैं।
जब यह तक वितर्क खत्म हो गया आप उसने मुस्कुराकर अपने पति से कहा”पापा बार-बार मुझे मेरे मायके वालोंके बारे में कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं, मुझे उनसे रिश्ता रखने के लिए मना करते हैं, जैसे वो मेरे वो कुछ लगते ही नहीं है।”
लेकिन मैं बोलते समय है भूल गए कि उनकी गोद में भी छोटे से बिटिया (अपनी पोती) को लेकर बैठे रहते हैं।वो अपनी पोती को बिल्कुल भी रोना नहीं देखना चाहते, आधी रात को भी उसका रोना होने विचलित का देता है। परेशान हो जाते हैं।
सच्चाई तो यह है उनके बेटी नहीं है, उन्हें बेटी को अपने से दूर करना कितना मुश्किल है,इस बात का अहसास ही नहीं है।
लेकिन उनको अपनी पोती का थोड़ा-सा भी रोना उन्हें परेशान कर देता है….
पर….वो भी एक दिन किसी की बहु बनेगी,,, उनसे दूर रहेगी। इस बात को समझना नहीं चाहते।
वो मन मसोस कर रह जाती…
– सीमा गुप्ता (अलवर)राजस्थान