सच्चाई
प्रियतम! तुम आधा बटेर हो
मैं हूँ आधा तीतर
मुझमें यदि उग्रता अपरिमित
क्षमा तुम्हारे भीतर
रूठ गए तुम भले मगर है
क्षमा अभी भी उर में
और उग्रता भरी हुई है
अब भी मेरे सुर में
सारा जग आधा तीतर है
है बटेर भी आधा
इसका रंगबिरंगापन
बनता न प्रगति में बाधा
बाधा इसे मानते हैं जो
वे मूरख अज्ञानी
बुद्धिमान ने हर युग में
यह सच्चाई पहचानी
© महेश चन्द्र त्रिपाठी