सचिव न के दोहे
विषय :- पाप पुण्य
विद्या :- दोहा
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प्रश्न
【रचना】
#प्रश्न (१)पाप और पुण्य की परिणिति क्या है?
#उत्तर
पाप -पुण्य के मध्य में , भटके प्राणी नित्य।
पाप कर्म की अधोगति , सद्गति पुण्य अनित्य।।०१।।
पुण्य-कर्म सद्गति करे , करे सुजीवन शुद्ध।
पाप-कर्म की अधोगति , बतला रहे प्रबुद्ध।।०२।।
#प्रश्न(२)जब सारे कर्म अंतर्निहित ईश्वर ही कराते हैं,तो पाप और पुण्य जीव के लिये बंधनकारी क्यों होते हैं?
#उत्तर
भले कराता ईश वह , जग में सारे कर्म।
लेकिन स्वयं विवेक से , आप समझिये मर्म।।०३।।
मायामय इस जगत में , भ्रमता जीव विचित्र।
पाप-पुण्य हैं इसलिए , बंधनकारी मित्र।०४।।
#प्रश्न(३)पाप और पुण्य की परिभाषा स्थिति,स्थान और काल के सापेक्ष परिवर्तनीय है?
#उत्तर
देश-काल या परिस्थिति , पाप – पुण्य आधार।
सद्विवेक से कीजिए , अपने आप विचार।।०५।।
करो व्यर्थ हिंसा कहीं , कैसा पुण्य चरित्र।
संगर में रिपु का हनन , पाप नहीं है मित्र।।०६।।
#प्रश्न(४) क्या मनुष्यों के पाप या पुण्य करने में प्रारब्ध का भी योगदान है?
#उत्तर
पाप-पुण्य में सहज ही , होता है प्रारब्ध।
किंतु विवेकी मनुज को , पुण्य नित्य उपलब्ध।।०७।।
अविवेकी तो अष्ट-पल , करे पाप के काम।
किंतु विवेकी सहज ही , पुण्य करे अविराम।।०८।।
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मैं 【पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’】 घोषणा करता हूँ, मेरे द्वारा उपरोक्त प्रेषित रचना मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित और अप्रेषित है।
【पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’】