सचिन के दोहे
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???सचिन के दोहे???
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धरा गगन सब तप्त है, सबको जल की आश।
जल का संचय ना हुआ, बुझेगी किते प्यास।।१।।
धरती प्यासी जल बिना, देख रहा आकाश।
जीव जन्तु प्यासे फिरें, नभ है बड़ा उदास।।२।।
जल का संचय सब करें, व्यर्थ न हो बर्बाद।
नीर बिना जीवन नहीं, जग न रहे आबाद।।३।।
जल संरक्षण सब करो, मन में करों विचार।
जल से ही जीवन बचे, जल से ही संसार।।४।।
जीवन धन्य हुआ वहीं, आया गैरन काम।
जीतेजी पूजे गये , जग में ऊँचा नाम।।५।।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
स्वरचित, स्वप्रमाणित
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार….८४५४५५