सचिन के दोहे
विषय :- बुद्धि और ज्ञान
विद्या :- दोहा
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【रचना】
#प्रश्न :- १ बुद्धि व ज्ञान एक ही सिक्के के दो पहलू हैं? स्पष्ट कीजिए।
#उत्तर. १
सब ग्रंथों का सार है , समझ रहा हर कोय।
ज्ञान-बुद्धि संयोग से , नर नारायण होय।।०१।।
दोनों का अस्तित्व है , सच समरूप अनूप।
ज्ञान-बुद्धि हैं सत्य में , आपस में प्रतिरूप।।०२।।
#प्रश्न :- २ ज्ञान रूपी भूषण प्राप्ति हेतु बुद्धि को मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है क्यों ?
#उत्तर .२
बुद्धि सार्थक है तभी , हो विवेक की छाँव।
ज्ञानाभूषण प्राप्ति हित , सतत गहे गुरु पाँव।।०३।।
ज्ञानी होकर व्यक्ति भी , लहे न कभी कुबुद्धि।
अतः मार्गदर्शन उचित , करे भाव की शुद्धि।।०४।।
#प्रश्न :- ३ सूरज के समान महाज्ञानी व्यक्ति भी रवि की रश्मि अर्थात बुद्धि के बिना अधूरा है।समझाइए?.
उत्तर .३
ज्ञानवान था विश्व में , सत्यमेव विख्यात।
रावण था सच में #सचिन , भूतल पर प्रख्यात ।।०५।।
समझ सत्य यह लो #सचिन , मत पालो अभिमान।
बिना बुद्धि के व्यर्थ है , दुनिया भर का ज्ञान।०६।।
#प्रश्न:- ४ क्या ज्ञान निर्गुण व सगुण ब्रह्म में भेद मिटाकर बुद्धि को सन्मार्ग पर ला सकता है ?
उत्तर .४
ज्ञान विनय देकर भरे , अंतस दिव्य विवेक।
तब इस निर्गुण-सगुण का , रूप सिद्ध हो एक।।०७।।
निराकार-साकार का , भेद मिटाकर मित्र।
ज्ञान बुद्धि-सन्मार्ग दे , जीवन करे पवित्र।।०८।।
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मैं 【प.संजीव शुक्ल ‘सचिन’】 घोषणा करता हूँ, मेरे द्वारा उपरोक्त प्रेषित रचना मौलिक, स्वरचित, अप्रकाशित और अप्रेषित है।
【पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’】
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सभी प्रबुद्ध शब्द शिल्पियों को मेरा प्रणाम स्वीकार हो
एकबार अवलोकन कर मेरा भी मार्गदर्शन करें सभी गुणीजन।