सगीर गजल
रात भर तुम को जगाने का सबब है कोई।
दिल मेरा कहता है आंखों में तलब है कोई।
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आंच आती है तेरे हु़स्न की बेताबी से।
ऐसा लगता है सुलगती हुई शब् है कोई।
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नींद में मैं तेरे आगो़श में सो जाता हूं।
तेरी बाहों में हूं या ख़्वाब ए तरब है कोई।
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अब फिजा़एं भी सुनाती है तेरा गीत मुझे।
अजनबी शहर में लगता है अ़जब है कोई।
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हुस्न तेरा है ति़लस्मी ऐ मेरी जाने वफा।
देखकर दिल मेरा कहता है, ग़ज़ब है कोई।
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सगी़र आता है उसे देखकर अब ऐसा सुकूं।
दर्द कि खुद वो दवा है या मत़ब है कोई।