सगा बेटा – एक धोखा
दिनांक 19/5/19
स्वतंत्र लेखन
रामलाल अपनी जिंदगी भर की कमाई लगा कर शानदार मकान बनवा रहे थे । उनके दो लडके थे बड़े गर्व के साथ वह लोगों से कहते :
” अरे दोनों के लिए रहने लायक सभी सुविधाओ वाला घर तो चाहिए ना , सभी ” टू बी एच के ”
के बनवाए है । ”
रामलाल के दोस्त शंकरलाल ने एक दिन पूछ ही लिया :
” और तू कहाँ रहेगा रामलाल ”
रामलाल ने कहा :
” अरे दोनों अपने लडके ही तो है , किसी के यहाँ भी रह लेंगे और ऊपर नीचे की तो बात है ।”
बात आई गयी हो गयी ।
मकान पूरा होने पर था , तभी रामलाल के दिमाग न जाने क्या आया उन्होंने ऊपर छत पर एक टीन के शेड का कमरा बनवा लिया। शंकरलाल ने फिर पूछा :
“इतना शानदार मकान बनवाया है फिर यह टीन का कमरा कुछ समझ नहीं आ रहा ? ”
रामलाल ने कहा:
” अरे कुछ नहीं बस यूँ थोडा बहुत पुराना कबाड़ का सामान रखने के काम आयेगा ।”
उस समय रामलाल के दोनों बेटे भी थे और वह मुस्कुरा दिये ।
रामलाल अव सेवानिवृत हो गय थे और दोनों बेटों की शादी हो गयी थी । घटनाक्रम तेजी से चल रहे थे , रामलाल की पत्नी का देहान्त हो गया , वह पोते पोती वाले हो गये शरीर थकने लगा ।
बहुओं की अपेक्षाऐ बढने लगी , रामलाल जी बोझ हो गये । चाहे वह नीचे रहे या ऊपर एक कमरा तो अटक ही जाता है । लडके अपनी बीबियों के कहने में आ गये थे ।
खैर शंकरलाल पर्दे के पीछे से हर गतिविधि पर निगाह जमाये हुए थे
विडम्वनाओ के साथ अरन्तु परन्तु के दौर घर में चलने लगे थे ।
मकान पर दोनों बेटों का बराबरी का हक हो गया था , आजकल वसीयत पूछता कौन है , ताकत है तो वसीयत है वरना लाचारी और बेटे बहुओं की दयादृष्टि।
रामलाल पर केन्द्रित चर्चाओं का दौर रोज होता था :
” बाबूजी रात रात खांसते हैं, अरे अब तो खटिया पर ही करने लगे है पूरे घर में बदबू फैलती है ।
कुल मिलाकर भूमिका यह बन रही थी रामलाल को घर से बाहर कैसे और कहाँ किया जाए ?
जब बात वॄध्दाश्रम तक पहुँची,
तब रामलाल को टीन के शेड का कमरा याद आया ।
वह बिना किसी से कुछ कहे अपना सामान समेट कर उसमें चले गये।
यह सब उन्हें ऐसा लग रहा था :
” जैसे सगा बेटा धोखा दे जाए और कोई गैर बेटा साथ दे रहा हो ।”
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल