सखी वो नागिन विषैली
सखी वो नागिन विषैली
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रास्ते में मिली सहेली।
नाम था चंपा चमेली।
जिस पथ मै था चला,
उस पथ पर वो मिली,
पर नहीं थी वो अकेली।
रास्ते में मिली सहेली।
बढ़ गया था फ़ासला,
बना पागल बाँवरा,
सखी वो नागिन विषैली।
रास्ते मे मिली सहेली।
गैर रंग में रंगी,
किसी और संग खड़ी,
बंद थी बाहर हवेली।
रास्ते में मिली सहेली।
खेलती अठखेलियाँ,
प्यार की हर गोलियाँ,
दुल्हन हो नवी नवेली।
रास्ते में मिली सहेली।
मेरे संग था जहां,
फिर क्यों खड़ी थी वहाँ,
समझ आई नहीं पहेली।
रास्ते में मिली सहेली।
मनसीरत से खफ़ा,
क्यों निकली बेवफा,
खाली रह गई हथेली।
रास्ते मे मिली सहेली।
रास्त्ते मे मिली सहेली।
नाम था चंपा चमेली।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)