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27 Apr 2017 · 1 min read

सखी और सम्बन्ध

न कोई है रिस्ता न कोई है नाता
शायद इसे लिखने भूले बिधाता
अगर धागे उससे जुड़े ही न होते तो
हर रोज उसको क्यों झरोखे मे पाता

निरंतर ही निकट न उसके मैं जाता
न ही रोज मैं अपने मन को समझाता
बस यही लालसा रूह की है सखी
काश नित्य एक देवी, झलक देख पाता

प्रेम है स्वछ गंगा सा अपना
निर्मल है और तुलसी सा सादा
प्रकाश है पूरा जीवन मे उसका
मगर वो सप्तमी के चाँद सा आधा

गुलाब सा लाल और अम्बर सा नीला
राधा सा चंचल, और कृष्णा सा रंगीला
जलाशय सा मग्न, मोर सा सुन्दर
रेशम से भी ज्यादा है वो चमकीला

गीता सा पवित्र, मनु स्मृति सा गहरा
जीवन के हर पन्ने पर उसका है चेहरा
छलकता टकराता पासाणो से आया
कंकड़ न मारो पानी अब है ठहरा

Language: Hindi
Tag: गीत
335 Views
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