सखि! बसंत आया है।
झर-झर झरे वो पात पुराने
नव पल्लव स्वर खिलखिलाया है
प्रेम राग हर शाख ने गाया
ऋतुओं ने सेहरा सजाया है
सुना है सखि! बसंत आया है।
सुदल हो रहे इक-इक भूपद
वल्लरि हरित वर्ण आया है
मुग्ध सुरभि दर्शित दिग्व्यापी
नव किसलय भी मुस्काया है
सुना है सखि! बसंत आया है।
मदिर-मदिर वासंती बयार ने
कण-कण सृष्टि का महकाया है
ओढ़ धरा ने पीत चुनरिया
सरसों के फूलों को टंकाया है
सुना है सखि! बसंत आया है।
फूले टेसू संग महके पलाश भी
वर्णों की सतरंगी छाया है
होली की इन्द्रधनुषी उमंगें
देखो हर तन-मन नहाया है
सुना है सखि! बसंत आया है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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