सकारात्मक सोच
हम सब लोग दुःख से बचना चाहते हैं और शायद हम सही करते है लेकिन हमेशा सुख की आशा करते हैं यह शायद ग़लत करते हैं। बेशक ज़िंदगी में हमेशा सकारात्मक सोच रखनी चाहिए लेकिन हमेशा अच्छा होने की सोचना ही सकारात्मकता नहीं है । सकारात्मक सोच का मतलब यह नही है कि हम हमेशा अपनी जीत और कामयाबी के बारे में सोचे हमेशा ख़ुशी पाने की उम्मीद करे। नही मैं तो ऐसा बिलकुल नही सोचता। मेरी सकारात्मकता की परिभाषा इससे कुछ अलग है। हम सब जानते हैं की सुख दुःख, हार जीत, सफलता असफलता, यह सब हमारी ज़िंदगी का हिस्सा हैं इनके बग़ैर ज़िंदगी मुमकिन नही है तो फिर हमेशा अच्छा सोचना ज़िंदगी कैसे हो सकता है । दर असल हमें सुख के साथ दुःख की भी आशा करनी चाहिए, जीत के साथ हार की सम्भावना भी समझनी चाहिए सफलता के साथ साथ असफलता से भी इनकार नही करना चाहिए। मेरा मानना है कि अगर हम ये मानकर चलें की सुख की कामना और प्रयास करने के बाद भी दुःख प्राप्त हो सकता है तो हम पहले से मजबूत होकर चलेंगे और दुःख आने पर हम घबराएँगे नहीं बल्कि उनके लिए पहले से ही तैयार होकर चलेंगे उनसे निबटने के उपाय सोचकर चलेंगे। सकारात्मक सोच का मतलब है सुख की आशाओं के साथ दुःख की आशंका रखते हुए उससे निबटने के लिए भी खुद को तैयार रखना। जीत के प्रयासों के बीच हार की सम्भावना को ध्यान में रखकर तैयारी करना हमें हारने से बचा भी सकता है और हार जाने पर टूटने से भी बचा सकता है । और जीत के लिए फिर से प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित भी करेगा । एक मिसाल के तौर पर मान लो हम किसी जंगल के रास्ते सफ़र पर निकलते हैं और हम ये सोचकर चलें कि हमें कोई जंगली जानवर नही मिलेगा या कोई ख़तरा नही मिलेगा हम आसानी से निकल जाएगे क्या ये सकारात्मक सोच है नही बल्कि मूर्खता है । अगर हम ऐसा ही सोचकर चलेंगे तो इसका मतलब हम मुश्किलों को नज़रंदाज़ कर रहे हैं और उनके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं होंगे तो क्या हम ये सफ़र पूरा कर पाएँगे ? शायद नहीं । लेकिन अगर हम ये मानकर चलेंगे की रास्ता मुश्किल होगा काफ़ी मुसीबतों का भी सामना करना पड़ सकता इसलिए उनके लिए तैयार होकर चलेंगे तो उनसे निबटना भी आसान होगा और सफ़र पूरा करने में यकीनन सफ़लता मिलेगी। यह सकारात्मक सोच है ।