” सकारात्मकता का दीप”
सूखी शाख पर झांकती कपोलों को देखा,तो ये ख्याल आया
कि ज़िंदगी का सफर भीतो है इसी की है प्रतिछाया
आज है पतझड़ तो कल बसन्त भी आयेगा
सूखा पड़ा यह वृक्ष भी तो फिर से लहलहायेगी
आशा की किरण को संजो कर रखना
तभी तो कल नया प्रकाश पुंज आयेग
मत व्यथित करो हदय को इन विपदा के क्षणो में
क्योंकि रात के बाद ही तो नया सवेरा आयेगा
मुखरित होगा जब अंतर्मन तभी तो
चहूं ओर सकारात्मकता का दीप जलायेगा
बुलन्द करो हौसलों को सब अपने
तभी तो लक्ष्य आपके कदम चूम पायेगा
कामिनी