* सईंया जी का चशमा *
सईंया जी का चशमा
// दिनेश एल० “जैहिंद”
सईंया जी का चशमा, बलमा जी का चशमा
बना सौतन अब मेरी, बैरी हुआ अब चशमा
मैं गर नज़र न आऊँ, लगाके बड़ा वो चशमा
टेढ़ी कर के अँखियाँ, घूरे मुझको अब बलमा
गिरते चशमा को, अंगुलियों से है पकड़ता
आगे-पीछे कर के, अखबार फिर वो पढ़ता
बिन चशमा के उसे, कैटरीना दीखे करीना
चशमा लगाके बोले, रीना तो है भई मीना
पड़ोसन लगे प्यारी, बूढ़ी भी दीखे कुमारी
दाल को कढ़ी कहे, कभी नर को कहे नारी
धुँधली नजर के कारन, ऊँट दीखे जिर्राफ
अच्छी-खासी बुद्धि भी, हो चली अब हाफ
भरी जवानी में ही, चढ़ा लिया अब चशमा
खूब ढूँढा हैं दामाद, बापू ने अम्मा री अम्मा
जब-जब खाँसी आए, गिरने लगता चशमा
करके बहाना नज्रों का, जी चुराए निकम्मा
बिन चशमा वो तो, दीखता हैंडसम सईंया
चशमा लगाके अब, दीखता पैंसठ का दईया
बलमा का चशमा तो, मेरा सुख-चैना छीना
कैसे जिया जाए सखी, कष्टकारक हुआ जीना
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दिनेश एल० “जैहिंद”
27. 09. 2017