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16 Jul 2022 · 2 min read

*25 दिसंबर 1982: : प्रथम पुस्तक “ट्रस्टीशिप-विचार” का विमोचन*

25 दिसंबर 1982: : प्रथम पुस्तक “ट्रस्टीशिप-विचार” का विमोचन
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हमारी पहली पुस्तक “ट्रस्टीशिप-विचार” 1982 में छपी थी । 25 दिसंबर को इसका लोकार्पण राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (टैगोर शिशु निकेतन )में संभवतः रामपुर के प्रसिद्ध आशु कवि श्री कल्याण कुमार जैन शशि के कर कमलों द्वारा हुआ । शशि जी रामपुर के जाने-माने कवि थे । काव्य जगत में आप की तूती बोलती थी । रामपुर से बाहर भी दूर-दूर तक आपकी पहचान थी। पुस्तक लाल कागज में लपेटी गई थी ,जिसे फीता खोलकर शशि जी ने सब को दिखाया और इस तरह विमोचन की औपचारिकता पूरी हुई ।
सहकारी युग (हिंदी साप्ताहिक) के संपादक श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी की प्रेस में पुस्तक छपी थी । नाम-मात्र के मूल्य पर छपी थी बल्कि कहना चाहिए कि घाटे पर उन्होंने पुस्तक को प्रकाशित किया था। समारोह में महेंद्र जी ने पुस्तक और पुस्तक के लेखक के संबंध में जोरदार भाषण दिया था ,जिसे सुनने के बाद वहाँ उपस्थित हमारी एक बुआ जी ने हमारे पिताजी से कहा था कि इनकी नजर हमारे लड़के पर लग रही है। वही हुआ । दिसंबर 1982 में पुस्तक प्रकाशित हुई और जुलाई 1983 में हमारा विवाह महेंद्र जी की सुपुत्री मंजुल रानी से संपन्न हो गया ।
पुस्तक पर बनारस का पता अंकित था। हम उन दिनों बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एलएल.बी. कर रहे थे । कमरा संख्या 42 , डॉक्टर भगवान दास छात्रावास में रहते थे। इसी कमरे में रहते हुए हमने राष्ट्रीय ख्याति-प्राप्त महानुभावों से ट्रस्टीशिप के संबंध में पत्र व्यवहार किया था । जो उत्तर हमें पत्र-रूप में प्राप्त हुए ,उन्हें पुस्तक के अंत में शामिल किया गया था । इससे ट्रस्टीशिप के संबंध में हमारे किए गए कार्य का महत्व कई गुना बढ़ गया था ।
छपने के बाद पुस्तक जिन महानुभावों को भेजी गई थी ,उनमें एक नाम प्रसिद्ध कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन का भी था। एक दिन बच्चन जी की प्रतिक्रिया हमें साधारण-से पोस्टकार्ड पर प्राप्त हुई । हमने कमरा संख्या 42 ,डॉक्टर भगवान दास छात्रावास को ज्यों ही खोला ,जमीन पर अंदर एक पोस्टकार्ड पड़ा हुआ था । लिखा था :- ” ट्रस्टीशिप विचार की प्रति मिली। उपयोगी प्रकाशन है । आशा है पुस्तक का स्वागत होगा ।” नीचे कुछ कलात्मक आकृति बनी हुई थी । यही लेखक के हस्ताक्षर थे । पत्र के सबसे ऊपर “बंबई” लिखा हुआ था । न हम हस्ताक्षर पहचान पाए और न कुछ बच्चन जी का अता-पता लग सका ।
कुछ समय बाद “धर्मयुग” पत्रिका में बच्चन जी की एक कविता प्रकाशित हुई थी। उसमें नीचे उनके हस्ताक्षर छपे थे । हम खुशी से उछल पड़े । अरे वाह ! यह तो वही हस्ताक्षर हैं ,जो हमें पोस्टकार्ड पर प्राप्त हुए थे । अब इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं थी कि जो सुंदर प्रतिक्रिया पुस्तक पर हमें प्राप्त हुई थी ,वह हिंदी के मशहूर कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन जी की ही थी । पत्र को हमने पहले से भी ज्यादा संभाल कर रखा। आखिर यह अपने आप में एक अमूल्य वस्तु बन गई थी।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 761 54 51

Language: Hindi
233 Views
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