*संस्मरण : श्री गुरु जी*
संस्मरण : श्री गुरु जी
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गुरु जी ने मुझे गोद में लिया । कहने लगे -“अबोध है ! “और फिर होठों से हल्की-सी फूँक मेरे मुख को सौंप दी । यह गुरु जी का आशीर्वाद था ,जो मुझे उस समय प्राप्त हुआ जब वास्तव में मैं अबोध ही था ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर “गुरुजी” हमारे घर पर पधारे थे। पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ ने मुझे आशीर्वाद दिलाने के उद्देश्य से गुरुजी की गोद में दिया था । महापुरुषों की गोद का सौभाग्य पुण्यों के फल-स्वरुप ही प्राप्त होता है ।
गुरुजी भारत की महान ऋषि परंपरा के सर्वोत्कृष्ट प्रतिनिधि थे । वह संत और संन्यासी थे । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उत्तरदायित्व बहुत यत्न-पूर्वक डॉ. हेडगेवार जी ने उन्हें सौंपने में सफलता प्राप्त की थी।
गुरुजी से पिताजी का संबंध संगठन से बढ़कर एक व्यक्तिगत मार्गदर्शक का हो चुका था । 19 जनवरी 1956 में जब श्री सुंदरलाल जी के देहांत ने पिताजी को अत्यंत व्यथित कर दिया ,तब अपने मन की पीड़ा उन्होंने एक पत्र के माध्यम से गुरु जी को ही लिख कर भेजी थी । न जाने वह पत्र आंतरिक पीड़ा का कौन-सा महासागर समेटे हुए था कि गुरुजी उसे पढ़कर द्रवित हो उठे । सांत्वना के लिए एक लंबी चिट्ठी उन्होंने पिताजी को भेजी। बाद में जब पिताजी ने सुंदर लाल इंटर कॉलेज की स्थापना की ,तब श्री नानाजी देशमुख आदि के साथ-साथ गुरुजी का शुभकामना संदेश भी प्राप्त हुआ था।
1977 में मुझे दीनदयाल शोध संस्थान दिल्ली में जाने का अवसर प्राप्त हुआ था। वहाँ जीने की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए श्री गुरु जी का आदमकद चित्र लगा दिखा था। इतना सुंदर कि सजीव जान पड़ता था।
श्री नानाजी देशमुख को जब भारत रत्न पुरस्कार मिला तो यह एक प्रकार से समूची संघ और जनसंघ परंपरा को प्रणाम था।
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रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451