संस्पर्श
स्पर्श कहूँ संस्पर्श कहूँ
क्या कहूँ
तुम्हारा एकटक घूरना
फिर नजर फेर लेना
क्या कहूँ
जिस राह जाऊँ
उस राह आ जाना
क्या कहूँ
पर तुम जो कहते हो
करते नहीं हो
इसे क्या कहूँ
मेरा यूँ हाथ पकड़ना
फिर बाहुपाश में भरना
इसे क्या कहूँ
संस्पर्श कहूँ तो
जो कहूँ कहना मानो
स्पर्श कहूँ तो पास रहो
क्योंकि प्रेम चाह है
मधुर मिलन की राह है
हम तुम पर्थिक है
प्रेम पन्थ के ।