#संस्कृति
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★ #संस्कृति ★
हे प्राणसखा ! वेदों में सामवेद
पेड़ों में पीपल तुम
श्वेतार्क महके गौरीसुत
पवन रुनझुन रुनझुन रुनझुन
पवन रुनझुन रुनझुन रुनझुन . . .
रथी तुम रथवान तुम
नित वंदन किया हूँ मैं
चलो, ले चलो जिधर
तुमरे रथ का पहिया हूँ मैं
पवन रुनझुन रुनझुन रुनझुन . . .
तुम ही जड तुम ही चेतन
ज्ञान-अमृत पिया हूँ मैं
तुम सुई तुम ही धागा रहे
ओढन-बिछावन सिया हूँ मैं
पवन रुनझुन रुनझुन रुनझुन . . .
तुम सूरज तुम ही चन्द्रमा
तुमने चाहा जिया हूँ मैं
न मैं अर्जुन न मैं वासदेव
तुलसी का दिया हूँ मैं
पवन रुनझुन रुनझुन रुनझुन . . .
तुम लेख तुम्हीं लेखक होते
जब-जब जन्म लिया हूँ मैं
तुम कर्ता कारण भी तुम ही
सबके भीतर हिया हूँ मैं
पवन रुनझुन रुनझुन रुनझुन . . .
तुमरी किरपा अनगिन धारा
तुमसे आ मिलता दरिया हूँ मैं
परमस्नेही प्रियजन प्रभु जी
नेहा चुगती चिरिया हूँ मैं
पवन रुनझुन रुनझुन रुनझुन . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२