संस्कृति अनमोल
सावधान क्यों मना रहें जश्न
कलेंडर भर ही तो बदला है।
ईस्वी सन् हो गया अब बीस
हिंदुस्तानी साल न बदला है।
भूल गये नवबर्ष हमारा हम
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को आता है।
आधी रात रजनीचरि जश्न
देवत्व सूर्यप्रभा में हरषाता है।
तारीख को स्वीकार करना तो
दुनिया को देना एकरूपता है।
लेकिन नवबर्ष हमारा गौरव
स्वाभिमानिक विजय पताका है।
एतिहासिक पहचान दिलाती
विजयी पर्व से जुड़ी गाथा है।
काश कलेंडर ऐसा छपता
जब आता नवबर्ष हमारा है।
ऐसा कर सकते प्रकाशक
जिनका भारतीयता से नाता है।
आने वाली पीढ़ी को फिर
बिन बताये ही कह सकता है।
स्वागत करने में हर्ज नहीं
अपना नवबर्ष याद रखना है।
जश्न मनाने का रंगढ़ंग हमारा
पाश्चात्य शैली पर न चलना है।
बात बहुत ही छोटी सी लगती
आधुनिकता अब भारी बोझ है।
भविष्य की तैयारी करते रहना
यें भारतीय संस्कृति अनमोल है।
(राजेश कुमार कौरव सुमित्र)