संस्कृतम्
संस्कृतम्
*********
संस्कार की जननी “संस्कृत”,
भाषाओं में पावनी “संस्कृत”।
भाषा यह, भावों से अलंकृत;
युगों-युगों से है, ये पुरस्कृत।
संस्कृत है, हर भाषा का आधार;
इसकी वाणी से गूंजे, पूरा संसार।
इसके हर पंक्ति हैं, छंद से ‘सीले’;
हर शब्द इसके, रस से हैं ‘गीले’।
सुंदर मन को, ये भाषा ही भाये;
सब सुर-ताल संस्कृत से ही आए।
संस्कृत तो, देवों की भी भाषा है;
हर भाषा की, ये ही तो आशा है।
यही भाषा है, हर ज्ञान का स्रोत;
ये है, देशी भावना से ओत- प्रोत।
आज गणित हो, या हो व्याकरण;
सब चाहे , संस्कृत की ही शरण।
कंप्यूटर हो , या हो कोई विज्ञानी;
बिन संस्कृत के, सब ही अज्ञानी।
‘दानव’ सब डरे, संस्कृत बोली से;
इससे भागे वो, जैसे कोई गोली से।
अगर न होती, ये भाषा विमल तरंगे;
हर जन होते आज, बहरे और गूंगे।
छोड़, ईर्ष्या-द्वेष, इसे अपनाए हम;
जयतु संस्कृतम्, जयतु भारतम्।।
######################
..✍️ पंकज “कर्ण”
……..कटिहार।।