संस्कार
जिसने खुद ढोया चिता तक लाश अपने बाप की।
आप बतलाइए, उसको क्या है जरूरत आप की।।
आप आगे हो खड़े तो, हो बड़े ये मानते हो।
हो सृजन कैसे बड़प्पन का, नहीं तुम जानते हो।
वो बुलाएगा सभी को जब तेरहवीं का भोज देगा।
रोज तर्पण भी करेगा और घड़े में जल भी देगा।।
वो निरुत्तर है नहीं पर मृत को उत्तर क्यों ही देगा।
संस्कारित हो जिया जो, वो संस्कारित ही मरेगा।।
छल कपट और झूठ का, तूने बनाया जो समाज।
हो मुबारक तुमको ‘संजय’ मरकटो का स्वर्णताज।।