‘संस्कार’
‘संस्कार’ अर्थात शुद्ध कार्य , या संशोधित कार्य। संस्कार एक प्रक्रिया है जो समाज में सभ्यता से रहना सिखाती है। संस्कार धार्मिक और सामाजिक दोनों प्रकार के होते हैं।
संस्कार मनुष्य को समाज में संयम और नियम से चलना सिखाते हैं। उम्र ,संबंध, और पद के अनुसार व्यवहार की शिक्षा भी संस्कार ही हैं।आज समाज में संस्कारों की अन देखी बढ़ रही है।
आज शिक्षक एक कर्मचारी समझा जाता है। वहीं शिष्य धनोपार्जन का साधन।
माता-पिता बोझ समझे जाते हैं।अतिथि दैनिक दिनचर्या में बाधक समझे जाते हैं।चारों तरफ़ स्वार्थ का बोल बाला है। संस्कार विहीन समाज नर्क के समान है। संस्कार से समाज का उत्थान होता है। किसी भी संस्कृति को जीवित रखने के लिए संस्कार आवश्यक होते हैं। संस्कृति से देश या समाज अपनी अलग पहचान बनाता है।
घर परिवार संस्कारवान होगा तो आनेवाली संतानें सुसंस्कृत बनेंगी।
गोदाम्बरी नेगी
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