*संसार देख के*
डूबती है आँख , संसार देख के ।
भीगती है आँख तार तार देख के ।
देखते ही देखते सब मौन हो गया ।
सोच रखा रात सुबह कौन धो गया ।1।
खोलता हूँ मुख पर आवाज कांपती।
आंसुओं की पांत है ना धार नापती ।
कल जो था एक आज पौन हो गया ।
सोच रखा——————————-।2।
नींद हो या जाग, या फिर सुनसान में।
परेशान हैं करबटें ,ना जान जान में ।
फूटती है आह सी, औ रौंन हो गया ।
सोच रखा——————————-।3।
वेकार यह चलन है, घुटन सब तरफ ।
दिख रहा रौशनी को ,स्वर्ग में नरक ।
चौंकते ही दिन में,रातका भौन हो गया।
सोच रखा——————————-।4।
पहचान में ना आये ,वो है कौन मूरती।
पल पल दिन रात ,है वो मान घूरती ।
मेरे आयने में वो , घिनौन हो गया ।
सोच रखा——————————–।5।
मस्तक की दीवार पे, छपती छाँव सी ।
अंजान सी वो देह है ,टूटे पाँव सी ।
करते ही स्पर्श वो, बैगोंन हो गया ।
सोच रखा —————————- -।6।
दिख नहीं रहा है और ,कोई भी रास्ता।
जीने दे भगवान तू , मुझे रे आहिस्ता।
भय बोलता की तू , मनौंन हो गया ।
सोच रखा——————————–।7।