संसार क्या देखें
* गीतिका *
~~~~
प्रदूषित है धरा सारी यहां संसार क्या देखें।
ग्रहण जब लग चुका मौसम हुए लाचार क्या देखें।
नहीं खिल पा रहे हैं फूल पत्ते सूखते जाते।
कली मुरझा रही असमय हुई बीमार क्या देखें।
बहुत की कोशिशें हमने निराशा ही मिली हमको।
बढ़ी है दूरियां हर पल नज़र में प्यार क्या देखें।
बहुत की कोशिशें हमने सभी का साथ पाने की।
बिना मतलब खिसकता जा रहा आधार क्या देखें।
भयंकर आ गया तूफान बढ़ता जा रहा पानी।
नहीं हिम्मत जुटा पाए नदी का पार क्या देखें।
अपेक्षा क्या करें सहयोग की विपरीत अवसर पर।
नहीं जो मुस्कुराते हैं सुखद व्यवहार क्या देखें।
गरज़ते जा रहे बादल मगर पानी नहीं बरसा।
चलो छोड़ो नहीं वर्षा कहीं बौछार क्या देखें।
बहुत उम्मीद लेकर आ गये लेकिन करें अब क्या
बहुत मँहगा सभी कुछ है यहां बाजार क्या देखें।
~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य