संसार का स्वरूप
जब देखता हूं चारों ओर संसार में सभी कुछ ना कुछ संसार से चाहने में लगे है।सभी के मन अशांत है, सभी दौड़ लगा रहे है, यहाँ-वहां की किस ठिकाने जाए और कोई हमारे दु:खों को दूर कर दे।कोई तो रास्ता मिले सभी दुखी है ऐसा लग रहा है मानो यह दुखियों का संसार है।सारे सुख खोजने निकले है और मजे की बात तो यह है की दु:ख जिसका स्वरूप है इस संसार से सुख चाह रहे है।अरे भला संसार में सुख कभी मिला है ?जिसका स्वरूप सुख है ही नही वहां सुख कैसे मिलेगा?चाहे कितने जन्म ले के संसार में आ जाओ यहां सुख है ही नही।फिर भी इच्छा उसी से सुख लेने की है।संसार में जन्म- मृत्यु, जरा ,व्याधि ये सभी दु:ख ही तो है।इसके अतिरिक्त जो मानस रोग पाल रखे है ।अगर अमुक वस्तु मिल जाए तो सुखी ना मिले तो दु:खी।किसी को नाम, पद चाहिए।किसी को धन किसी को सुंदर स्त्रियां। अरे जरा उनसे पूछ लो जिनको ये सब सुलभ थे, क्या वो राजा महाराजा सुखी हुवे?वे भी भय में डूबे रहे कोई आक्रमण ना कर दे कहीं ये सुविधाएं छीन ना जाए ।वृद्धावस्था का भय इंद्रियां शिथिल हो जाएगी तो मैं स्त्री का सुख कैसे लूंगा।मृत्यु का भय ।कोई भी इस संसार में सुखी नही हो सकता जब तक उसने सुख की इच्छा कर रखी है।सुख लेने की इच्छा का त्याग ही दु:खों की निवृत्ति है।अगर आप सुख को स्वीकारते है तो दुख को भी आपको स्वीकारना होगा।परंतु आज सभी मोह माया में डूबे स्वयं को शरीर समझ शरीर से सुख शरीर से माने हुवे संबंधों में सुख ढूंढ रहे है।यह जानते हुवे भी की ये सब पदार्थ और स्वयं का शरीर भी नश्वर है।फिर भी धन,पद,नाम,विषय भोग इत्यादि ही चाहिए ।और किसी महापुरुष के पास जाए या अपने ईश्वर से भी यही वस्तुएं मानव मांगता रहता है।कभी उसे ये चीजे मिल जाती है प्रारब्ध वशात कभी नही।
क्रमश…….ये पोस्ट जारी है ।इस पोस्ट के बारे में सभी की प्रतिक्रियाएं एवं मार्गदर्शन सादर आमंत्रित है।आपका शुभेच्छु
©ठाकुर प्रतापसिंह “राणाजी “