संसार का स्वरूप (2)
संसार वास्तव में दु:खालय ही है। जों कहते है इसमें सुख भी मिलता है तो वास्तव में वो दु:खो का थोड़ी देर का विराम है उसे ही हम सुख मान लेते है। इस दु:ख का भी बड़ा महत्व है दु:ख की वजह से ही हमारी इस खोज की शुरुआत होती है की क्या कोई ऐसा जीवन होता है जिसमे दु:ख का सर्वथा अभाव हो या केवल अनंत आनंद ही हो।ये सभी अनुभव कर चुके है और कर ही रहे है की इस संसार में सुख तो है ही नही और जो है भी तो वो माना हुआ सुख है ।संसार को जिसने जान लिया वो ये जान गया की संसार में सुख है ही नही क्योंकि जों निरंतर परिवर्तनशील है,निरंतर नाश की ओर अग्रसर है भला उसमे सुख कैसे हो सकता है जों नष्ट हो रहा है उससे सुख नहीं दु:ख ही मिलेगा क्योंकि हमारी सदा बने रहने की इच्छा है ।इसलिए तो वैज्ञानिक खोज में लगे है की मानव की उम्र कैसे लंबी हो की वो ज्यादा से ज्यादा जी सके।परंतु अभी तक कोई सफल नहीं हुआ।क्योंकि गीता में भगवान ने कहा है जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है।और मृत्यु को प्राप्त होने वाले का जन्म निश्चित है। अच्छा एक बात और की ये सुख दुख कौन अनुभव करता है?……
क्रमश:…..
©ठाकुर प्रतापसिंह राणा
सनावद(मध्यप्रदेश)