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2 Nov 2021 · 2 min read

संसारिक और मौलिक जीवन की विधिताः

आम सामाजिक जीवन चलाकर,
संसारिक मौलिक व्रत्ति में रहते।
ऊच-नींच भाव समझ नहीं पाते,
कारण औचित्य बिन कार्य रहे करते।

एक तरह के रंग रुप दिखाकर,
स्वाभाविक कृति आम जैसी है सबकी।
छोटे बड़े सब रुप अलग रहे दिखते,
सोंच विधाकर सभी रहे करते।

इस संसार में सभी लोग रहकर,
अहम श्रेष्ठ पद को बनाने हेतु चलते।
कारण आधार जिसे समझे नहीं।
उक्त विधा में काफी लोग जीते रहे।

शहर गांव में उक्त विधा निश्चित,
श्रेष्ठ स्वाभिमानी बन विशेषित होते रहे।
कपड़ें मकान सुन्दर इच्छित घरों में,
उक्त भाव विधियों में जीवन चलाते रहे।

पद स्वाभिमान मर्यादा के कारण,
आम सामान्य कभी रुककर बोले नहीं।
क्रिया कर्म के भाव रहे हमारे जैसे,
जाति विशिष्टता सभी समझते रहें।

श्रेष्ठ समर्पण भाव अपने जैसे करके,
अपना बनाकर दिल से लगाते रहे।
अपना पराया कैसी विधा दिखती रही,
ऐसी संस्कृति नहीं अपनानी चाहिए।

मिट्टी जलवायु सूर्य चांद से पाकर,
योग द्रष्टिता में मन को लगाते रहे।
घर परिवार आम जैसों की विधामें,
चाह संस्कृति बिन प्रेम न दिखाते।

धन दौलत पद विधा की सम्पति,
उसकी चाह हेतु क्या क्या किये हैं।
भाव की कैसी रही अद्रष्टीय कहानी,
वैचारिक बौद्धिक इसमें जीते नहीं।

कैसी मुहब्बत होती है तन मन की,
सांख्य कर्मयोग सब अटूट बने रहते।
जन्म से मरण तक अपनाकर निभाये,
संसारिकता हटाकर मौलिक में जिये हैं।

चाह और लालच में उसको बदलकर,
मौलिक द्रष्टता उसे नजर नहीं आती।
बहुत संस्कृति की विधिता दिखती रही,
चमत्कारिक द्रष्टता में ठहर नहीं पाते।

कैसा आकर्षण रहा किसी विभा का,
वाणी चाह द्रष्टता कितना प्रभाव देती।
द्रष्टि भाव में कैसा रहा आकर्षण,
सुंदर द्रष्टता स्यमं वैचारिकता अपनाती।

आंख-वाणी चाह में कितनी अंतरंगता,
विधा भटककर आम बनकर जीते रहे।
योग भोग रखते खुद की विधा में,
अंतर् विधा भाव उसको ठहराती नहीं।

घर समाज तथा रिश्ते और नाते,
सकारात्मक शक्ति देकर स्पष्टता दिखाती
सौर्य पराक्रम को विधा में लेकर,
बौद्धिक परमशक्ति तब अद्वैत बन जाती

विद्वता धन धान्य में जब कम होता,
सकारात्मक विशिष्ट तब परम श्रेष्ठ होते।
छोटे बड़े विधा कामौलिकभावजब आता
तब मौलिक विधिता खुद परदेमेंहो जाती

शिक्षा दिक्षा धन और दौलत,
उक्त छोड़कर विशिष्ट मौलिक में होते।
परम उद्वैतिक जिसकी प्रबल शक्ति हो,
नियम और विधि से पूर्णतः रहे करते।

यदि कर्म निष्ठताभौतिकऔरब्यापक नहीं
विद्य जताने हेतु उक्त विधा करते।
कार्मिक आद्योगिक परम श्रेष्ठ बनकर,
विविध क्रती कर पूर्ण सजग जीते।

Language: Hindi
395 Views
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