संसद बनी पागलखाना
ये लोकतंत्र के नाम पर
कैसा खेल-तमाशा है
संसद बनी पागलखाना
कितना शोर-शराबा है…
(१)
क़ानून और व्यवस्था की
ख़स्ता हालत देखकर
मायूसी फैली हर दिल में
मिलता नहीं दिलासा है…
(२)
मालिकों के इशारे पर
मीडिया जिसे छुपा रही
वह तो आम जनता के
ख़्वाबों का जनाजा है…
(३)
कौन जाने अगला पल
क्या पैग़ाम सुनाएगा
आए दिन किसी शहर में
होता कोई धमाका है…
(४)
किसने फूंकी यह बस्ती
कहां गए वे ग़रीब लोग
अब घुट रहा है दम यहां
चारों तरफ़ धुंआ-सा है…
(५)
सदियों तक ग़ुलाम रहा
जिनके चलते अपना देश
मेरी शायरी में उन्हीं
साजिशों का खुलासा है…
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Shekhar Chandra Mitra
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