संवेदना
जो भाव मन मे आये वो संवेदना ,
लेशमात्र जो मन को छू जाए वो भी संवेदना।
जो अनुभूति हो वो भी संवेदना,
खुशी के पल हो ,चाहे हो वेदना।
लिख रही हूं मैं तुम्हे काव्य की साधना में,
वेदना संवेदना में तुम ही मेरी वंदिगी में।
शब्द के शब्दार्थ में ,भाव के भावार्थ में,
प्रेम हो तुम मेरे ,काव्य के काव्यार्थ में।
अब किसी का भय नही मिल गया हमको किनारा,
प्रेम है प्रियतम हमारा ,संवेदना बन्धन हमारा।
संवेदना से ही जाना ,जिंदगी के पार्थ हो तुम,
प्रेम पथ पर चल कर जाना,धर्म के सार तुम।
संवेदना की सरिता बहती ,हर एक एहसास में,
वो मानव, मानव नही जो संवेदना से मुक्त हो।
संवेदना का बंधन है हर स्पर्श हर ठोकर पर,
अनगिनत किस्से छपे है संवेदना के पन्ने पर।
सच्चा मित्र हैं संवेदना ,जिसका ऐसा चरित्र है।,
साहसी बहुत है ,गंगा की तरह पवित्र है।
ना साथ छोड़े क्रोध में, ना साथ छोड़े प्रेम में,
प्रतिछण आभाषित मानव के देह में।
कितनी सिसकियों में ,आसुंओं में ,
अदृश्य है पर संवेदना का मोल हैं।
इन खामोशियों को ये सींचते हैं ,
मानव को हम इससे ही पहचानते हैं।
संवेदना की भूमि प्रेम गगन का वातावरण हो ,
ऐसे लोगों से करती हूं निवेदन।
जो संवेदना से मुक्त हो कर रहे निर्वहन,
उन रोती हुई सिसकियों को कर दो दफन।
बिन संवेदना हम कुछ जान नही सकते,
मानव में मानवता को पहचान नही सकते।
रिश्तों की हदों को हम जान नही सकते,
इसकी आहट के बिना जिंदगी सँवार नही सकते।।
लेखिका – एकता श्रीवास्तव ज्योतिषाचार्य
प्रयागराज 🙏