*संवेदना*
यह भ्रम है कि संवेदनाएं नहीं होती।
गर ये नही होती तो गम और खुशी नहीं होती।।
कभी संवेदनाओं से होती थकान,
कभी होती धड़कने भी मद्धिम ।
कभी इनसे थम जाती है सोच,
कभी ख्यालों की रफ़्तार हो जाती तेज।
कभी ना चाहते हुए भी संवेदनाओं से भर जाती है आंखें
तो कभी होंठों पर बेबाक हंसी होती है।
कभी सर्द रातों में चुभते है घाव कई,
तो कभी गर्मियों में भी लहजे में नमी होती है।
सतरंगी सपने संजोये पुलकित…
दुल्हन का सजा विवाह- मंडप
बने जब दहेज की बलि- वेदी तो..
रिश्तों की पवित्रता लुप्त हो ,
गम एवं दर्द की लम्बी फेहरिस्त बनने से …
जहाँ देखों वही संवेदनाएं बिखरी होती है।
स्वार्थ और लोलुपता की दलदल में…
वेदना से क्रंदन करते हृदय में,
संवेदनाएं भावशून्य होती है।
लेकिन…
मौहब्बत के रेशमी अहसास में ,
फूलों में छुपी सुंगध की तरह ….
मधुर संवेदनाएं सिमटी होती है।
यह भ्रम है कि संवेदनाएं नहीं होती है।
लेकिन लफ़्ज़ों में ‘मधु’…
इनकी अभिव्यक्ति पूर्ण नहीं होती है।।