संवेदना
स्नेह संवाद संवेदना
की बात चली
तो लगा
संवेदना के गलियारों में
स्नेह के साथ अथाह प्रेम है
साथ ही
भीगे आँसुओं का
गहरा समन्दर है
आहों की कविता
दर्द भरे गीत
दबी दबी सिसकियां
और एकाएक
वेदना को अनुभव कर के आहत भावनाओं को दिल की गहराईयों
में उतारते हुए
संवेदना सब को
बाहों में भर लेती है
सीने से लगा लेती है
प्रेम पगे फाहे
प्यार भरी अनुभूति
दुख दर्द हर लेती है
कहीं स्नेहिल स्पर्श
आँसू पौंछते हाथ
मानों जीवन में बहार आई
दिल में सतरंगी इंद्धनुष
घिर आएं
राहत के
सकून के
खुशनुमा गुलाब
खिल उठें
और संवेदनशीलता
मानवता की उच्चतम
शिखर पर
स्नेह संदेश देती है
कि प्रेम धर्म है
सेवा साधना है
सहानुभूति – औषधि है
स्नेह स्पर्श अमृत बूंद है
यहीं संवेदना का
अनुभूति का
हमदर्दी का
पुनर्जन्म है।
डॉ करुणा भल्ला