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10 Sep 2016 · 1 min read

संवेदना

जग धरती पर ऐसा भी है होता
वेदना उतर कर पॉव पसारती
संवेदना व्यक्ति की नग्न हो जाती
देख विकलता मन है मर जाता

दया ,ममता ,करूणा कहाँ है जाती
मानव खण्ड विकसित ना हो पाता
विकसने से पहिले आत्मा मर जाती
देख विकलता नहीं शान्त बैठ पाता

दुनियाँ से खत्म मनुजता को देख
मन क्यों तेरा नही बरबस रो जाता
सूट बूट में चलता फिरता तू इतराता
इनका भी भला इन्सान तू करता

विधाता ने नीचे डाल ना सोचा होगा
मेरी दोनों कृतियों मे वैषम्य न होगा
पैसे वाला न पैसे वालें को सम्हालेगा
मेरा तो कुछ बोझ भार ही उतारेगा

डॉ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
74 Likes · 397 Views
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