संवेदना
बंटी को कुत्ते बहुत अच्छे लगते थे। वो चाहता था कि उसके घर में भी एक कुत्ता हो जिसको पाल के वो उसके साथ खेल सके। पर उसकी माँ को कुत्ते तो क्या कोई भी पालतू जानवर घर पर रखना पसंद नहीं था। शायद इसीलिए उन्होंने बंटी की इच्छा की कोई परवाह नहीं थी।
बंटी के घर के बाहर ही गली में एक कुत्ता था जिसे वो कभी कभी निकलते बैठते पुचकार देता था। कभी हाथ फेर लेता तो कभी गोद में उठा लेता बिना माँ के देखे। वो कुत्ता भी बंटी को देखते ही पूछ हिलाना शुरू कर देता। कभी क़दार बंटी माँ से छुपाकर घर के गेट के अंदर ले आता और थोड़ा खेल लेता। इसी वजह से आये दिन वो गली का कुत्ता बंटी के घर के बाहर बैठा रहता। आज बंटी जैसे ही गेट पर आया , वह कुत्ता बंटी को देखते ही उछलने लगा। बंटी ने जल्दी से गेट खोल कर उसे अंदर ले लिया। बंटी आज कुछ ज्यादा ही निश्चिन्त हो के खेल रहा था। तभी धड़ाम की आवाज़ आयी जिसे सुनते ही माँ झट से घर के बाहर आ गयी। ये क्या गमला टूटा पड़ा था। शायद कुत्ते के पास खेलते समय पैर से लग कर टूट गया हो। माँ ने आव देखा न ताव और बंटी को दो-तीन झापड़ रसीद कर दिए। बंटी सिसकी मार के वही खड़ा रो रहा रहा था और गेट के बाहर खड़ा वो कुत्ता देख रहा था। उसके बाद से वो कुत्ता कभी बंटी के घर के बाहर नहीं दिखा। शयद वो खुद को कसूरवार मान रहा था। जानवरो में भी ये संवेदना होती है, ये देख कर मेरा मन भर आया।