संवेदना की पहचान
जीवन की पहेलियों में बिखरा,🍂
रंगीन रंगो में रंगहीन हैं
मानव ही मानव से विग्रह क्यूँ है
इस युग में संवेदना की पहचान करो।।
समय के घेरे में चकरा रहा क्यूँ है 🍂
नवीन हस्तियों के मेले में ग़ुमराह क्यूँ है
बेमतलब के शोर में चिल्ला क्यूँ रहा 🍂
कलयुग के अँधेरे में छुपा क्यूँ है
भ्रष्टाचार के धोखे में फँसा क्यूँ है🍂
आँधी-तूफ़ान के चापेटे में ख़ामोश क्यूँ हैं
इस युग में संवेदना की पहचान करो।।
मौलिक एवं स्वरचित- डॉ. वैशाली वर्मा✍🏻