संवेदनायें
संवेदना किसी भी वेदना का कारण होती हैं
ये संवेदनाएं ही हैं जो निवारण भी करती हैं
संवेदनाओं की अपनी होती एक निजी भाषा
बिना शब्दों के आँखों में परिभाषा होती है
संवेदनाओं के कारण ही भजन में भाव आता है
संवेदनाओं के कारण ही नया बदलाव आता है
संवेदनाओं में छिपी होती कभी महाप्रलय भी
और संवेदनाओं से ही बन नया अध्याय जाता है
संवेदनाओं में वहे तो मनुज अवतार गो गये
संवेदनाओं को मारा तो महा अवतार सो गये
संवेदनाओं को जगाकर गीत संगीत बनता है
संवेदनाओं को भुलाकर भाव तार तार हो गये
संवेदना मनुज को मनुज से देवता बनाती हैं
संवेदना मनुज को जीवन जीना सिखाती हैं
संवेदनाओं में छिपा रहस्य कुल प्रकृति का
संवेदनाएं समाज को दर्पण भी दिखाती हैं
संवेदनशील मनुष्य ही प्रायः संत हो जाते
संवेदन शील क्षेत्र हो तो वही क्रांत बन जाते
त्रस्त होता समाज संवेदनविहीन जब होता
संवेदनशील हो तो नवीन अनुसंध हो जाते
आग्रह यही पुनः सभी से संवेदनाओ को जगाइए
एक नवीन आशा की पुनः हृदय किरण जगाइए
धरती संत्रप्त हो चुकी आधुनिक अंधेपन से अब
पुनः अपने संस्कार संस्कृति को संवेदना बनाइये
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