संवेदनाएं
मत पालो ये भ्रम मन में,
वेदनाएं विलुप्त हो गयी है ,
संवेदनाएं कही खो गयी ।
जगाती है तुम्हे तुमसे,
जोड़ती है तुम्हे उनसे,
संवेदनाएं यही कही है।
एक रिश्तो के बंधनों से,
एहसासों के भावनाओं से,
संवेदनाएं परे नहीं है।
दर्द को एक बेदर्द से,
अप्रिय को प्रीत से,
संवेदनाएं बुलाती ही है।
कही चुप चाप बसी हुयी है,
कही हृदय में छवि दिखती है,
संवेदनाएं मिटी नहीं है।
रूठे को मनाये खुद भी वह,
खुद में असर दिख जाये उससे,
संवेदनाएं मरी नहीं उसकी ।
शून्य नहीं होती है यूँ ही,
बाह्य अवरण को तुम गिरा दो,
संवेदनाएं उभर आयेगी सामने।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।