*संविधान गीत*
तुमने गर्दिश में भी हर्ष लिखा,
हर पिछड़े का संघर्ष लिखा।
अनगिनत यातना झेली पर,
विचलित न किंतु तनक दिखा।
तूफां में जो बन बाज़ उड़ा, ऐसे थे भीम महान।
हर ग्रंथ से पावन है, मेरे भारत का संविधान।।
दहलीजों में कैद ताड़ना,
लायक तुलसी की नारी।
या देवों की दासी थी या,
सिर मुडवाती बेचारी।।
धर्म ग्रंथ की रीतों ने जो,
जिंदा जला दयी नारी।
संविधान के बल पर वो ही,
आज शनि पर हैं भारी।।
हर बेड़ी को काट कलम से लौटाया सम्मान।
हर ग्रंथ से पावन है मेरे भारत का संविधान।।
आस्तीन के साँप हैं कुछ,
जो गरल दबाये बैठे हैं।
कुछ जयचंद्र विभीषण तो,
कुछ सकुनि जाये बैठे हैं ।।
तुम लड़े हमें भी है लड़ना,
सामंती सोच की बेड़ियों से।
जो करे तिरंगे को भगवा,
ऐसे उन चंद भेड़ियों से।।
अधिकारों को शस्त्र बना कर्तव्यों को ईमान ।
हर ग्रंथ से पावन है मेरे भारत का संविधान।।
पंचशील के शीलों में हर,
मानव का उत्थान छिप।
सारनाथ के स्तम्भों में,
बुद्ध का वो विज्ञान छिपा।।
सत्य अहिंसा से आलोकित,
विश्व धरा करने वाले।
तक्षशिला और नालंदा में,
विश्व ज्ञान भरने वाले।।
सर्वधर्म सद्भाव जगाता दिल में स्वाभिमान।
हर ग्रंथ से पावन है मेरे भारत का संविधान।।
✍ कवि लोकेन्द्र ज़हर
9887777459
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