संविधान का अनुच्छेद 30 क्या है ? , भारत में मदरसे और मिशनरी विद्यालय किस अनुच्छेद के तहत खुलते है ? , अनुच्छेद 30 कैसे है समानता के अधिकार के खिलाफ ? , आइए चर्चा करें |
संविधान का अनुच्छेद 30 क्या है ?
भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 में लागु होने के बाद से 395 अनुच्छेदों के साथ विश्व का सबसे बडा़ संविधान बना हुआ है | दुनियां के अन्य किसी देश के पास इतना बडा़ संविधान नही है | अनुच्छेद 30 हमारे भारत के इसी संविधान के भाग 3 मूल अधिकार के संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार में वर्णित 3 अनुच्छेदों में से एक है | इसका शिर्शक है ‘शिक्षा संस्थाओं की स्थापना तथा प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार’ |
क्या कहता है अनुच्छेद 30 ?
अनुच्छेद 30 के खण्ड 1 के अनुसार ‘धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों कों अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना एवं प्रशासन का अधिकार होगा’ वही इसी खण्ड 1 (क) के अनुसार ‘किसी भी अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा प्रशासित शिक्षा संस्थान की सम्पत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबन्ध करने वाली विधि बनाते समय राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी सम्पत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी ना हो की उस खंण्ड के अधिन प्रत्यभुत अधिकार निर्बन्धित या निराकृत न हो जाए’ |
इसी तरह खण्ड 2 के वर्णानुसार ‘शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्थान के विरुद्ध इस आधार पर विभेद नही करेगा की वह धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबन्ध में है’ |
भारत में मदरसे और मिशनरी विद्यालय किस अनुच्छेद के तहत खुलते है ?
भारत में मदरसे और मिशनरी विद्यालय इसी अनुच्छेद 30 के तहत खुलते है क्योंकि हमारे भारत देश में कुल जनसंस्खया का लगभग 19 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय तथा 1 प्रतिशत ईसाई समुदाय अल्पसंख्यक वर्ग में आते है | यदि जनसंख्या के लिहाज से देखा जाए तो मुस्लिम समुदाय भारत का दुसरा सबसे बडा़ बहुसंख्यक समुदाय है जिनकी जनसंख्या लगभग 21-22 करोड़ के करीब है जो पुरे पाकिस्तान की जनसंख्या के बराबर है और वही दुसरी ओर भारत की सबसे छोटी अल्पसंख्यक आबादी पारसीयों की है जिनकी जनसंख्या लगभग 60-90 हजार के बिच में है | मगर आप तलाशेंगे तो पाएंगे की पुरे देश में पारसीयों के लिए विशेष शिक्षा संस्थान नाममात्र के हैं या नही हैं कम से कम मैने तो नही देखे मगर मदरसे और मिशनरी विद्यालय भारत के कोने कोने में हैं जबकी ईसाइयों की जनसंख्या भारत में 3 करों से ज्यादा है |
अनुच्छेद 30 की आलोचनाएं
अनुच्छेद 30 की कुछ निम्नलिखित आलोचनाएं हो सकती हैं :-
1. अनुच्छेद 30 हमारे संविधान के समानता के अधिकार अनुच्छेद 15 के खिलाफ हैं जिसमें लिखा गया है की धर्म , मूलवंश , जाति , लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी से विभेद नही किया जाएगा |
2. यह किसी बहुसंख्यक व्यक्ति के अपने धर्म के बारे में उसे पढ़ाने से केवल इस आधार पर ही रोक देता है की वह बहुसंख्यक परिवार में जन्मा है तथा वह अपने धर्म को पढ़ाने के लिए किसी संस्थान को चला नही सकता है |
3. सन् 1976 के 42वे संविधान संसोधन के तहत हंमारे संविधान की प्रस्तावना में ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द लिख दिया गया है जिसका अर्थ यह होता है कि भारत राष्ट्र का कोई धर्म विशेष नही है तो फिर धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक कहां रह जाते हैं | और यदि राय्ट्र में संविधान के अनुसार कोई अल्पसंख्यक बहुसंख्यक नही है सब बराबर हैं तो फिर अलग से धार्मिक शिक्षण संस्थानों कि जरुरत कहां रह जाती है |
4. अनुच्छेद 30 में घर्म के साथ साथ भाषायी अल्पसंख्यकों का भी जिक्र है मगर पुरे भारत देश में भाषायी अल्पसंख्यकें के लिए शिक्षण संस्थान ना के बराबर हैं | उदाहरण स्वरुप बात करुं तो संस्कृत संविधान की आठवी अनुसूची में सामिल 22 भाषाओं मे से एक है इसके बोलने वालों कि संख्या पुरे देश में कुछ हजारों में होगी | संस्कृत भारत में बोली जाने वाली सबसे पुरानी भाषाओ मे से एक है पर आज इसे भारत में मृत भाषा कहा जाता है और इसके प्रचार प्रसार एवं संरक्षण के लिए पुरे देश में वर्तमान में कितने शिक्षण संस्थान हैं आप स्वयं पता कर लिजिए |