संवाद
जब उडते हुये ये **पराग कण,
बन सकते है बोझ सैंकड़ों मण,
है ये कौन सी परीक्षा के क्षण,
बिन खोज़ मिले आदमी विभिषण,
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फुटपाथ पर न *थूकने की कहे,
*पेशाब तक उन पर सहज बहे,
सोते हैं रात को मुसाफ़िर यहाँ,
तुम्हें नहीं तो **किसको **कहें.
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*स्वच्छता पर *अरबों *खर्च हुये,
आखिर *चश्मा वाले **गाँधी डटे,
रसोई प्रबंधन जैसे लडे हो सरहदें,
मेरा भारत महान कैसे आगे बढ़े,
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वैद्य महेन्द्र सिंह हंस