“संवाद जरूरी है”
यूँ तो अक्सर मैं चुप रहती हूँ,
फ़न पे पैर जब पड़ता,
तिलमिला उठती हूँ,
मन करता है हुँकार भरूँ,
अन्याय के विरूद्ध संवाद करूँ,
संवाद जरूरी है,
पर कौन सुनेगा,
त्रिया चरित्र कह,
नकार देगा,
सदियों से गुलामी सही,
पुरूषत्व अहम् सहा,
कुछ न कहा,
पर अब लगता है,
संवाद जरूरी है,
हम और तुम में जो फाँसले हैं,
वो भरने को,
संवाद जरूरी है,
सदियों से जो प्रताड़ना सही,
उससे उभरने को,
गिरह की जो गाँठें हैं,
उन्हें ढीला करने को,
संवाद जरूरी है,
बुद्धि पीछे अक़्ल है औरत की,
कहावत को झूठा करने को,
अपनी अक़्ल का लोहा मनवाने को,
संवाद जरूरी है,
बंद पिंजरे में पँख मेरे उड़ना भूल गये,
खुली हवा में उड़ने को,
आसमान छूने को,
वास्तविक स्वतंत्रता पाने को,
संवाद जरूरी है,
नये पँख मिले,
उड़ान भरी,
नये आयाम छूऐ,
उन आयामों की कहानी सुनाने को,
संवाद जरूरी है,
कोमल हृदय हूँ,
पत्थर नहीं हूँ मैं,
ठेस मुझे भी लगती है,
आँच आती है,
आबरू पे मेरी तब,
रूह मेरी काँप उठती है,
रूह की तपन मिटाने को,
आबरू बचाने को “शकुन”,
संवाद जरूरी है।